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A title i borrowed from the book Five Point Someone by Chetan Bhagat. it sums up most of what i believe in. Its funny how words and pictures sometime reveal more than the people themselves!
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December 29, 2008

इस बार नहीं

इस् बार् जब् वो छोटी सी बच्ची मेरे पास् अपनी खरोन्च् ले कर् आयेगी
मैन् उसे फू फू कर् नहीं बेहलाऊन्गा
पनपने दुंगा उसकी टीस् को
इस बार नहीं

इस् बार् जब् मै चेहरोन् पर् दर्द् लिख देखून्गा
नही गाउन्गा गीत् पीडा भुला देने वाले

दर्द् को रीसने दून्गा,उटरने दून्गा अन्दर् गेहरे
इस बार नहीं

इस् बार् मै ना मरहम् लगाऊन्गा
ना ही उठाऊन्गा रुइ के फहेय्
और् ना ही कहूंगा कि तुम् आखें बंद् करलो,गर्दन् उधर् कर् लो
मै दवा लगाता हुं
देखने दुंगा सबको हम् सबको खुले नन्गे घाव्
इस बार नहीं

इस् बार् घावों को देखना है
गौर् से
थोडा लम्बे वक्त तक्
कुछ् फ़ैसले
और् उसके बाद् हौसले

कहीं तो शुरुवात् करनी ही होगी
इस् बार् यही तय् किया है !




-प्रसून जोशी

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